Sunday, October 21, 2018

मोबाइल देने के बजाए बच्चों को अपना समय देते हैं मैरीकॉम और राज्यवर्धन

हम भारतीय जहां मोबाइल को सबसे जरूरी मानकर चल रहे हैं, वहीं कुछ सफल लोग ऐसे भी हैं जो इसे बच्चों के लिए जरूरी नहीं मानते। वे बतौर माता-पिता बच्चों को ऐसी परवरिश दे रहे हैं, जहां मोबाइल के लिए कोई स्थान नहीं है। दैनिक भास्कर ने इन हस्तियों से बात की। इन्हीं में से दो एमसी मैरीकॉम और राज्यवर्धन सिंह राठौर ने भास्कर यूजर्स के लिए पत्र लिखे हैं। खास यह है कि ये पत्र उन्होंने बतौर मां और एक पिता की हैसियत से साझा किए हैं।

बच्चों को मोबाइल के बजाय खेल में व्यस्त रखती हूं : मैरीकॉम
हर मां की तरह यह चिंता मुझे भी है कि बच्चों को मोबाइल का कितना इस्तेमाल करने दिया जाए। मेरा मानना है कि बच्चे मोबाइल की तरफ तब जाते हैं, जब आप उन्हें जाने देते हैं। जरूरी यह नहीं कि आप उन पर बंदिशें लगाएं, जरूरी यह जानना है कि आप उन्हें मोबाइल के बदले दे क्या रहे हैं। यही वजह है कि मैंने बच्चों के लिए घर पर पियानो क्लास शुरू करवाई है। उन्हें घर पर फुटबॉल, बैडमिंटन जैसे खेलों की तरफ बढ़ा रही हूं। ताकि वे दिनभर खेल-खेल में नया सीखते रहें।

मां या पिता में कोई एक हमेशा बच्चों के साथ रहे

जितना संभव हो सकता है, बच्चों को मोबाइल से दूर रखने की कोशिश करती हूं....लेकिन आप तो जानते हैं...हैं तो वे बच्चे ही। पति और मैं कोशिश करते हैं कि दोनों में से एक हमेशा बच्चों के साथ रोज समय बिताएं। जब भी समय मिलता है, म्यूजिक और खेल की ही बात होती है। म्यूजिक हम सभी को पसंद है। इतना कि बस गाना चलाओ और डांस शुरू। याद रखिए वे बच्चे हैं। अधिकतर ज्ञान और आदतें वे आप ही से सीखते हैं। इसलिए उन पर बंदिशें लगाने से बेहतर है कि आप ही बच्चे बन जाएं और रोज नया सिखाएं।

तकनीक में बदलाव से मां-बाप की जिम्मेदारियां बढ़ीं : राज्यवर्धन

मोबाइल परिवर्तन का सबसे बड़ा प्रतीक है। टेक्नोलॉजी में रोज बदलाव हो रहे हैं, लेकिन यही परिवर्तन बतौर माता-पिता हमारी जिम्मेदारियों को और बढ़ा देता है। मोबाइल से आप बच्चों को दूर नहीं रख सकते, लेकिन उसके सीमित और सही इस्तेमाल की एक समय सीमा तय कर सकते हैं। वे भी तब जबकि यह बहुत जरूरी हो। मेरे दोनों बच्चे अपने भविष्य के निर्माण में जुटे हैं। बेटी 11वीं कक्षा में है। बोर्डिंग स्कूल में पढ़ती है, जहां मोबाइल के इस्तेमाल की इजाजत ही नहीं है।

बच्चों को मोबाइल नहीं अपना समय दें

बेटा प्रोफेशनल एथलीट के तौर पर तैयारी में जुटा है। यह समय दोनों बच्चों के करियर का सबसे अहम है। ऐसे में समय बिताने के लिए वे मोबाइल का इस्तेमाल नहीं कर सकते। मेरी हमेशा कोशिश होती है कि बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताया जाए। अगर हम चारों दिल्ली में होते हैं तो ब्रेकफास्ट और डिनर साथ करते हैं। बतौर पैरेंट आप उन्हें मोबाइल न दें, बल्कि अपना समय दें। उनमें इतना विश्वास होना चाहिए कि वे कभी भी आपसे बात कर सकें। मेरा बेटा और मैं हमेशा शूटिंग और वर्कआउट की बातें करते हैं

बेहद जरूरी होने पर ही बच्चों को मोबाइल दें

यह आप पर निर्भर करता है कि आपके बच्चे मोबाइल का कैसा इस्तेमाल कर रहे हैं। मेरा मानना है छात्रों को केवल टेक्स्ट मैसेजिंग जितना ही मोबाइल का इस्तेमाल करने देना चाहिए, वो भी तब जब बहुत जरूरी हो। वरना बिल्कुल नहीं। 

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